अनुच्छेद 47 (Article 47) : डेली करेंट अफेयर्स

‘जिन्हें शराब पीकर बिहार आना है, या लाकर बिहार में पीना है तो मत आइए।’ ये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं. हाल ही में, बिहार सरकार ने सामाजिक सुधारों के उद्द्येश्य से एक ‘समाज सुधार अभियान’ शुरू किया है। इसमें मुख्यमंत्री नितीश कुमार शराबबंदी के लाभों और समाज पर दहेज प्रथा और बाल विवाह के बुरे प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। गौरतलब है कि साल 2016 से ही बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगा हुआ है। आखिर किस संवैधानिक कानून के तहत बिहार सरकार ने शराब पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।

संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इसकी अवधारणा आयरिश संविधान से आई है। नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत ही अनुच्छेद 47 का जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक, सरकार का यह कर्तव्य है कि वह लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए काम करे। यहीं से किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार मिलता है कि वो मादक पदार्थों, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ओषधियों, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग पर रोक लगा सकती है।

हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अनुच्छेद 47 शराब उपभोग पर सीधे तौर पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, बल्कि ये राज्य को केवल उस दिशा में कोशिश करने के लिए कहता है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि नीति निदेशक सिद्धांत बाध्यकारी प्रकृति के नहीं होते हैं। इसीलिए अनुच्छेद 47 के तहत राज्य इस बात के लिए बाध्य नहीं है कि वो शराब या अन्य मादक पदार्थों के उपभोग को प्रतिबंधित ही कर दे। राज्य सरकार की कोशिश कई अन्य बातों पर निर्भर करती है जैसे कि कानून-व्यवस्था कैसी है; वित्तीय स्थिति कैसी है; ऐसा करना क्या व्यवहारिक रूप से संभव है; इस बात के लिए लोग कितने तैयार हैं; लोग शराब के दुष्प्रभाव के बारे में कितने जागरूक हैं, क्या कठोर कदम उठाना राज्य के हित में है …. आदि-आदि।

गौरतलब है कि अनुच्छेद 47 के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ओषधियों के उपभोग पर रोक लगाने का विचार सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। अगर किसी राज्य सरकार को ऐसा लगता है कि उसके राज्य में मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ओषधियों के उपभोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, तो वह ऐसा कर सकती है। इसके अलावा, 4 मई 2020 को मद्रास हाईकोर्ट में आर. धनासेकरण बनाम तमिलनाडु सरकार का एक मामला पहुंचा था। इसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में शराब के निर्माण, बिक्री और उपभोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। मगर याचिका पर विचार करने से कोर्ट ने इनकार कर दिया। मद्रास हाईकोर्ट ने माना था कि शराब को लेकर नियम पूरी तरह राज्य की नीति का मामला है। जिसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता।

यहां एक रोचक बात आपको बता दें कि अनुच्छेद 47 को लागू करने और इसके प्रावधानों को लेकर संविधान सभा की बैठक में भी जोरदार बहस हुई थी। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर ने सभा के सदस्यों को याद दिलाया था कि ये राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का एक हिस्सा है यानी यह बाध्यकारी नहीं है। अगर भविष्य में राज्य सरकारों को लगता है तो वह इसे लागू करने योग्य बना सकती हैं।

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