अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय International Court of Justice-ICJ

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: एक परिचय

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा की गई और अप्रैल 1946 में इसने काम करना शुरू किया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है जो हेग (नीदरलैंड्स) के पीस पैलेस में स्थित है।
  • संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख संस्थानों के विपरीत यह एकमात्र संस्थान है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है।
  • यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा निर्दिष्ट कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।
  • इसमें 193 देश शामिल हैं और इसके वर्तमान अध्यक्ष अब्दुलकावी अहमद यूसुफ हैं।

पृष्ठभूमि

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 33 में राष्ट्रों के बीच विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये बातचीत, पूछताछ, मध्यस्थता आदि विधियों की सूची है। इनमें से कुछ विधियों में तीसरा पक्ष भी शामिल है।
  • ऐतिहासिक रूप से, मध्यस्थता और पंच निर्णय की प्रणाली पहले से मौज़ूद रही है। पंच निर्णय प्रणाली प्राचीन भारत तथा इस्लामिक समुदायों का हिस्सा रही थी। बाद के उदाहरणों में इसे प्राचीन ग्रीस, चीन, अरब की जनजातियों के बीच तथा मध्यकालीन यूरोप के समुद्री कानूनों में देखा जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का आधुनिक इतिहास

  • आमतौर पर पहला चरण संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के बीच वर्ष 1794 की तथाकथित जय संधि (Jay Treaty) से जाना जाता है।
  • ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच वर्ष 1872 अलबामा दावे की मध्यस्थता को दूसरे चरण के रूप में देखा गया जो कि अधिक निर्णायक चरण रहा है।
  • रूसी ज़ार निकोलस द्वितीय द्वारा आमंत्रित वर्ष 1899 के हेग शांति सम्मेलन को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के आधुनिक इतिहास में तीसरे चरण की शुरुआत माना जाता है।
  • मध्यस्थता के संबंध में वर्ष 1899 के कन्वेंशन ने स्थायी संस्था के निर्माण पर बल दिया जिसे स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) के रूप में जाना जाता है यह वर्ष 1900 में स्थापित हुआ और वर्ष 1902 में इसका परिचालन शुरू हुआ।
  • कन्वेंशन ने हेग स्थित एक स्थायी कार्यालय भी बनाया, इसमें कोर्ट रजिस्ट्री या सचिवालय के अनुरूप कार्य होते थे और मध्यस्थता के संचालन के लिये प्रक्रिया और नियमों का एक समूह निर्धारित किया गया था।
  • वर्ष 1911 से वर्ष 1919 के बीच राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों तथा सरकारों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये विभिन्न योजनाओं और प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया जिसका समापन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद नई अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of International Justice-PCIJ) की स्थापना से हुआ।
  • वर्ष 1943 में चीन, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका ने एक संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि सभी शांतिप्रिय राष्ट्रों की संप्रभुता, समानता के आधार पर एक सामान्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना किये जाने की आवश्यकता है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिये बड़े और छोटे सभी राष्ट्रों के लिये खुला होगा।
  • इसके बाद वर्ष 1945 में जी.एच. हैकवर्थ समिति (USA) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना के लिये कानून बनाने हेतु मसौदा बनाने का कार्य सौंपा गया।
  • सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन ने समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए नए न्यायालय की स्थापना के पक्ष में निर्णय लिया जो महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, न्यास परिषद तथा सचिवालय की तरह संयुक्त राष्ट्र का एक प्रमुख अंग होगा।
  • वर्ष 1945 में PCIJ की आखिरी बैठक हुई जिसमें अपने अभिलेखागार और प्रभावों को नए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया।
  • अप्रैल 1946 में PCIJ को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पहली बार बैठक की तथा PCIJ के अंतिम अध्यक्ष जोस गुस्तावो गुरेरो (एल सल्वाडोर) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का अध्यक्ष चुना गया।

संरचना

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्ष के के लिये चुना जाता है। ये दोनों निकाय एक समय पर लेकिन अलग-अलग मतदान करते हैं।
  • निर्वाचित होने के लिये किसी उम्मीदवार को दोनों निकायों में पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये न्यायालय की कुल संख्या के एक-तिहाई सदस्य हर तीन साल में चुने जाते हैं और ये न्यायाधीश पुन: चुनाव के पात्र होते हैं।
  • ICJ को एक रजिस्ट्री द्वारा सहायता दी जाती है, रजिस्ट्री ICJ का स्थायी प्रशासनिक सचिवालय है। अंग्रेज़ी और फ्रेंच इसकी आधिकारिक भाषाएँ हैं।

न्यायालय के 15 न्यायाधीश निम्नलिखित क्षेत्रों से लिये जाते हैं:

1. अफ्रीका से तीन

2. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से दो

3. एशिया से तीन

4. पश्चिमी यूरोप और अन्य राज्यों से पाँच

5.पूर्वी यूरोप से दो

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अन्य निकायों के विपरीत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सरकार के प्रतिनिधि नहीं होते।
  • न्यायालय के सदस्य स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं जिन्हें दायित्व ग्रहण करने से पूर्व शपथ लेनी होती है कि वे अपनी शक्तियों का निष्पक्षता और शुद्ध अंतःकरण से उपयोग करेंगे।
  • ICJ के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये न्यायालय के किसी भी सदस्य को तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि अन्य सदस्यों की एकमत न हो कि वह आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है। अभी तक किसी भी न्यायाधीश को पद से विस्थपित नहीं किया गया है।

ICJ में भारतीय न्यायाधीश

  • दलवीर भंडारी: 27 अप्रैल, 2012 से न्यायालय के सदस्य
  • रघुनंदन स्वरूप पाठक: 1989-1991
  • नागेंद्र सिंह: 1973-1988
  • सर बेनेगल राव: 1952-1953

वर्तमान (6 नवंबर, 2021) में ICJ का स्वरूप कुछ इस प्रकार है:

 

न्यायाधीश का नाम देश
अब्दुलकावी अहमद यूसुफ (अध्यक्ष) सोमालिया
पीटर टॉमका

स्लोवाकिया

शू हानकिन, (उपाध्यक्ष)

चीन

रॉनी अब्राहम

फ्राँस

दलवीर भंडारी

भारत

एंटोनियो ऑगस्टो ट्रिनडाडे

ब्राज़ील

जेम्ल रिचर्ड क्रॉफोर्ड

ऑस्ट्रेलिया

मोहम्मद बेनौना

मोरक्को

जोआन ई. डोनोह्यू

अमेरिका

जॉर्जिओ गजा

इटली

पैट्रिक लिप्टन रॉबिंसन

जमैका

जूलिया सेबुटिंडे

युगांडा

किरिल गेवोर्जिअन

रूसी संघ

तस्सदुक हुसैन गिलानी (एड-हॉक न्यायाधीश)

पाकिस्तान

नवाज़ सलाम

लेबनॉन

यूजी इवसावा

जापान

जॉर्ज नोल्टे

जर्मनी

फिलिप गौटियर

बेल्जियम

 

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